Wednesday, December 1, 2010

चांदी के सिक्के

दोस्तो क्यों परेशान होते हो,
क्यों हैरान होते हो,
चांदी के चंद सिक्कों के लिए,
ज़रा सोचो,
चांदी के सिक्कों का करोगे क्या,
क्या इन सिक्कों को
आंखो पर रखने से नींद आ जाएगी,
या फिर इनसे,
रात की करवटें रुक जायेंगी !

और तो और, क्या कोई बतायेगा,
कि इन सिक्कों को देख कर,
क्या ‘यमदूत’ डर कर लौट जायेंगे,
या फिर, इन सिक्कों पर बैठ कर,
तुम स्वर्ग चले जाओगे,
या इन्हें जेब में रख कर,
अजर-अमर हो जाओगे !

अगर तुम सोचते हो,
ऐसा कुछ हो सकता है,
तो चांदी के सिक्के अच्छे हैं,
और तुम्हारी इनके लिए
मारामारी अच्छी है,
अगर ऐसा कुछ न हो सके,
तो तुम से तो,
तुम्हारे चांदी के सिक्के अच्छे हैं,
तुम रहो, या न रहो,
ये सिक्के तो रहेंगे,
न तो तुम्हारे अपने
और न ही ये सिक्के,
तुम्हें कभी याद करेंगे !

अगर ऐसा हुआ या होगा
फिर ज़रा सोचो,
क्यों परेशान होते हो,
चांदी के चंद सिक्कों के लिए,
अगर होना ही है परेशान,
रहना ही है जीवन भर हलाकान्,
तो उन कदमों के लिए हो,
जो कदम उठें तो,
पर उठ कर कदम न रहें,
बन जायें रास्ते,
सदा के लिए,
सदियोँ के लिये,
न सिर्फ तुम्हारे लिए,
न सिर्फ हमारे लिए ...... !

1 comment:

BrijmohanShrivastava said...

जिनको आंखेा पर रखने से न नींद आ सकती है और न आदमी बेचैनी की करवटें बदलने से रुक सकता है मगर लगा है उसी की हाय हाय करने में ।न इनको देख कर यमदूत रुक सकते है और न स्वर्ग से कोई विमान आ सकता है और न आदमी अमर हो सकता है मगर लगा है एकत्रित करने में ।लोग इनके रुप में महामारी को इकटठा कर रहे है। अच्छी रचना त्याग की प्रेरणा देती मगर भैया इनके बिना काम भी तो नहीं चलता। धनवन्ता के व्दार पे खडौ रहत गुणवन्ता