Tuesday, December 7, 2010

भारतीय मीडिया : सांठ गांठ की नीति !

भारतीय मीडिया जिसे लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ माना जाना जाता है जिसके वर्त्तमान समय में दो धड़े प्रिंट मीडिया इलेक्ट्रानिक मीडिया के रूप में सक्रीय क्रियाशील हैं किन्तु विगत कुछेक वर्षों से इनकी सक्रियता क्रियाशीलता पर प्रश्न चिन्ह लग रहे हैं, यदि ये आँख मूँद कर बैठ जाते अर्थात निष्क्रिय होकर अपनी भूमिका का सम्पादन करते रहते तो शायद इनके अस्तित्व, सक्रियता क्रियाशीलता पर प्रश्न ही नहीं खडा होता, स्वाभाविक तौर पर यह मान लिया जाता कि लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ फ़ैल हो गया है किन्तु इनकी सक्रियता क्रियाशीलता में निरंतर बढ़ोतरी हुई है जिसका स्वरूप दिन--दिन सशक्त होकर उभर कर सामने है

लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ वर्त्तमान समय में सिर्फ सक्रीय क्रियाशील है वरन बेहद सशक्त आधुनिक संसाधनों से युक्त भी है, इन हालात में भी यदि मीडिया संदेह सवालों के कटघरे में खडी है जो निसंदेह गंभीर विचारणीय मुद्दा है ! वर्त्तमान समय में मीडिया पर सांठ गांठ के गंभीर आरोप लग रहे हैं यहाँ पर मैं स्पष्ट करना चाहूंगा कि सांठ-गांठ से मेरा तात्पर्य गठबंधन, मिलीभगत, साझानीति, तालमेल की नीति से है यह नीति सामान्य तौर पर सत्तासीन राजनैतिक अथवा व्यवसायिक प्रतिस्पर्धी आपस में तय कर अपने अपने मंसूबों को साधने के लिए उपयोग में लाते हैं

अब यह सवाल उठना लाजिमी होगा कि जब मीडिया का तो राजनैतिक और ही व्यवसायिक हितों से कोई लेना-देना है फिर यह सांठ-गांठ क्यों, किसलिए ! यदि मीडिया का राजनीति व्यावसाय से कुछ लेना-देना है तो वो सिर्फ इतना कि इनकी कारगुजारियों को समय समय पर निष्पक्ष निर्भीक होकर जनता के सामने रखने से है ! क्या कोई भी मीडिया कर्मी ऐसा होगा जो अपने कर्तव्यों दायित्वों से अंजान होगा, शायद नहीं ! फिर क्यों, मीडिया के खुल्लम-खुल्ला तौर पर राजनैतिज्ञों उद्धोगपतियों के साथ सांठ-गांठ के आरोप जगजाहिर हो रहे हैं !

आधुनिकीकरण की दौड़ एक ऐसी दौड़ है जिसमे हरेक महत्वाकांक्षी शामिल होना चाहेगा, यहाँ आधुनिकीकरण से मेरा तात्पर्य आधुनिक संस्कृति भौतिक सुख-सुविधाओं से ओत-प्रोत होने से है, जब आधुनिक संस्कृति अपने चरम पर चल रही हो तब क्या कोई भी महात्वाकांक्षी शांत ढंग से बाहर से देख सकता है, शायद नहीं ! संभव है एक कारण यह भी हो मीडिया का राजनैतिज्ञों उद्धोगपतियों की ओर रुझान का या फिर मीडिया को अपने पावर अर्थात शक्ति का अचानक ही एहसास हुआ हो कि क्यों राजनीति व्यवसाय को भी प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से संचालित किया जाए

हम इस बात से भी कतई इंकार नहीं कर सकते कि मीडिया को गुमराह करने का प्रयास नहीं किया गया होगा या ऐसे प्रलोभन नहीं दिए गए होंगे जिनके प्रभाव में आकर मीडिया रूपी धारा का रुख स्वमेव मुड गया हो ! संभव है इन कारणों में से ही किसी किसी कारण की चपेट में आकर मीडिया ने अपनी स्वाभाविकता को खो दिया है और तरह तरह के सवालों के कटघरे में स्वमेव खडी है ! संभव है यह बुरा दौर भी गुजर जाएगा किन्तु मेरा व्यक्तिगत तौर पर ऐसा मानना है कि मीडिया रूपी भव्य इमारत निष्ठा, निष्पक्षता, इमानदारी जनभावना रूपी बुनियाद पर खडी है यदि कोई भी व्यक्ति अथवा संस्था इस नींव पर सांठ-गांठ पूर्वक भव्य महल खडा करने का प्रयास करेगा वह महल बुनियाद पर ज्यादा समय तक ठहर नहीं पायेगा और स्वमेव ही भरभरा कर धराशायी हो जाएगा !

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