Friday, December 10, 2010

नक्सली उन्मूलन की दिशा में शांतिवार्ता का मार्ग कितना उचित !

यह न सिर्फ खेद का वरन शर्म का भी विषय है कि आज भी एक वर्ग नक्सलवाद को विचारधारा मानते हुए नक्सली कमांडर आजाद की पुलिस मुठभेड़ में हुई मौत को ह्त्या मान कर चल रहा है, सचमुच यह एक सच्चा लोकतंत्र है जहां इस तरह की भावनाएं व विचारधाराएं फल-फूल रही हैं ।

नक्सली कमांडर आजाद की मौत को ह्त्या मानने का सीधा-सीधा तात्पर्य पुलिस को हत्यारा घोषित करना है जब एक बुद्धिजीवी वर्ग इसे ह्त्या मान सकता है तो कल उसे शहीद की पदवी से भी नवाजा जाएगा ... धन्य है लोकतंत्र की माया जहां कुछ भी संभव है ।

मैं यह नहीं कहता कि शान्ति वार्ता का मार्ग अनुचित व अव्यवहारिक है पर यह जरुर कहूंगा कि जो लोग शान्ति वार्ता के पक्षधर हैं उन्हें क्या अपने आप पर पूर्ण विश्वास है कि उनके एक इशारे पर नक्सली हथियार छोड़ देंगे, यदि ऐसा है तो शान्ति वार्ता का प्रस्ताव उचित है अन्यथा सब बेकार है ।

मेरा व्यक्तिगत रूप से मानना तो यह है कि जमीन व जंगल में सक्रीय नक्सली, शान्ति वार्ता की पहल कर रहे बुद्धिजीवियों के नियंत्रण से बहुत बाहर हैं यदि ऐसा नहीं है तो वे एक बार आजमा कर देख लें, कहीं ऐसा न हो कि शान्ति वार्ता का कोई सकारात्मक नतीजा निकल आये और नक्सली अपनी मनमानी करते हुए फैसले को मानने से साफ़ तौर पर इंकार कर दें ... ज़रा सोचो उस समय क्या होगा !!

नक्सलवाद, नक्सलबाड़ी में शुरू हुआ जन आन्दोलन नहीं रहा वरन एक नक्सली समस्या बन गया है ... यदि आज कोई यह कहे कि नक्सलवाद शोषण व अन्याय के विरुद्ध आवाज है, विकास के लिए उठाया हुआ कदम है, एक जन आन्दोलन है तो सब बेईमानी है।

एक बात और उभर कर चल रही है वो है माओवाद, नक्सलवाद को माओवाद की संज्ञा से क्यों पारितोषित किया जा रहा है, नक्सलवाद और माओवाद में जमीन - आसमान का फर्क है दोनों के मूलभूत सिद्धांतों व उद्देश्यों की व्यवहारिकता में कोई मेल नहीं है और न ही हो सकता है ।

नक्सलवाद एक समस्या है इसके समाधान के लिए शांतिवार्ता का मार्ग भी अपनाया जा सकता है पर शांतिवार्ता के लिए भी कुछ समय सीमा तय किया जाना बेहतर होगा अन्यथा समय बर्बाद करने से ज्यादा कुछ नहीं जान पड़ता ... बेहतर तो ये होगा कि नक्सली उन्मूलन के लिए एक ठोस व कारगर रणनीति तैयार की जाए तथा नक्सलियों का राम नाम सत्य किया जाए ।
( नोट :- यह लेख दिनांक - १९ सितम्बर २०१० को लेखबद्ध किया गया था विलम्ब से यहाँ प्रकाशित है ) 

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