Thursday, December 16, 2010

भ्रष्टाचाररूपी महामारी : असहाय लोकतंत्र !

भ्रष्टाचार वर्त्तमान समय में कोई छोटी-मोटी समस्या नहीं रही वरन यह एक महामारी का रूप ले चुकी है महामारी से तात्पर्य एक ऐसी विकराल समस्या जिसके समाधान के उपाय हमारे हाथ में शायद नहीं या दूसरे शब्दों में हम यह भी कह सकते हैं कि इसकी रोकथाम के उपाय तो हैं पर हम रोकथाम की दिशा में असहाय हैं, असहाय से मेरा तात्पर्य भ्रष्टाचार होते रहें और हम सब देखते रहें से है

भ्रष्टाचार में निरंतर बढ़ोतरी होने का सीधा सीधा तात्पर्य यह माना जा सकता है कि देश में संचालित व्यवस्था का कमजोर हो जाना है, यह कहना अतिश्योक्तिपूर्ण नहीं होगा कि न्यायपालिका, कार्यपालिका व्यवस्थापिका इन तीनों महत्वपूर्ण अंगों के संचालन में कहीं कहीं प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से भ्रष्टाचार का समावेश हो जाना है अन्यथा यह कतई संभव नहीं कि भ्रष्टाचार निरंतर बढ़ता रहे और भ्रष्टाचारी मौज करते रहें

यह कहना भी अतिश्योक्तिपूर्ण नहीं होगा कि भ्रष्टाचार रूपी महामारी ने लोकतंत्र की नींव को हिला कर रख दिया है ! ऐसा प्रतीत होता है कि लोकतंत्र के तीनों महत्वपूर्ण अंग न्यायपालिका, कार्यपालिका व्यवस्थापिका एक दूसरे को मूकबधिर की भांति निहारते खड़े हैं और भ्रष्टाचार का खेल खुल्लम-खुल्ला चल रहा है भ्रष्टाचार के कारनामे बेख़ौफ़ चलते रहें और ये तीनों महत्वपूर्ण व्यवस्थाएं आँख मूँद कर देखती रहें, इससे यह स्पष्ट जान पड़ता है कि कहीं कहीं इनकी मौन स्वीकृति अवश्य है !

एक क्षण के लिए हम यह मान लेते हैं कि ये तीनों व्यवस्थाएं सुचारू रूप से कार्य कर रही हैं यदि यह सच है तो फिर भ्रष्टाचार, कालाबाजारी मिलावटखोरी के लिए कौन जिम्मेदार है ! वर्त्तमान समय में दूध, घी, मिठाई लगभग सभी प्रकार की खाने-पीने की वस्तुओं में खुल्लम-खुल्ला मिलावट हो रही है, ऐसा कोई कार्य भर्ती, नियुक्ति स्थानान्तरण प्रक्रिया का नजर नहीं आता जिसमें लेन-देन चल रहा हो, और तो और चुनाव लड़ने, जीतने सरकार बनाने की प्रक्रिया में भी बड़े पैमाने पर खरीद-फरोक्त जग जाहिर है

भ्रष्टाचार, कालाबाजारी मिलावटखोरी के कारण देश के हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं हालात निरंतर विस्फोटक रूप लेते जा रहे हैं यदि समय रहते सकारात्मक उपाय नहीं किये गए तो वह दिन दूर नहीं जब आमजन का गुस्सा ज्वालामुखी की भांति फट पड़े और लोकतंत्र रूपी व्यवस्था चरमरा कर ढेर हो जाए, ईश्वर करे ऐसे हालात निर्मित होने के पहले ही कुछ सकारात्मक चमत्कार हो जाए और ये महामारियां काल के गाल में समा जाएं, वर्त्तमान हालात में यह कहना अतिश्योक्तोपूर्ण नहीं होगा की भ्रष्टाचार ने महामारी का रूप धारण कर लिया है और लोकतंत्र असहाय होकर उसकी चपेट में है !

1 comment:

ManPreet Kaur said...

bahut hi acha likha hai aapne..

mere blog par bhi sawagat hai..
Lyrics Mantra
thankyou