Saturday, January 29, 2011

रोज की मोहब्बत हैं !!

हमने उससे तो
कुछ कहा ही नहीं,
वो जो रूठा था
बस रूठा था
अब चल के कैसे
हम मना लें उसे,
क्या करें फ़रियाद
और संभालें उसे !

उसका रूठना भी
गजब ढाता है
होते हैं सामने
पर गुमसुम होतें है
उसकी ये अदा भी
जाने क्यूं
मुझको भाती है
खामोशियों में भी
मोहब्बत झलक जाती है !

अजब होती हैं
रश्में मोहब्बत की
बजह भी हो
बे-वजह रूठ जाते हैं
रूठते भी हैं तो
बहुत इतराते हैं
हमको मालूम है
वो बे-वजह ही
रूठकर बैठे हैं
ये आज की बात नहीं
रोज की मोहब्बत हैं !!

No comments: