Saturday, January 29, 2011

फ़रिश्ते !

आज पहली बार
नया चेहरा
साहब
मत पूछो
मां बीमार, भाई थाने में
गरीब हूं, असहाय हूं

मां मर जाये
भाई जेल में सड जाये
मैं अनाथ हो जाऊं
इसलिये यहां खडी हूं
जब कुछ रहेगा ही नहीं
तब इस जिस्म का
क्या अचार डालूंगी ???

बोलो साहब बोलो
क्या दे सकते हो
घंटे, दो घंटे, या पूरी रात
हजार, दो हजार, या दस हजार
पूरे दस हजार
वाह साहब वाह

हाथ जोडती हूं
मेरे साथ चलो
मेरा दर्द मिटा लूं
तब ही तो तुम्हे
खुशियां बांट पाऊंगी

सीधा थाने, मुंशी से
बाहर ला मेरे भाई को
ले पकड
दो की जगह ढाई हजार

भाई बाहर
ले सात हजार
दवाई, राशन
घर ले जा

छोटा भाई
उम्र पंद्रह साल
खडा था
जुंए के अड्डे पे
खैर छोडो
चलो साहब

आप फ़रिश्ते हैं
सर-आंखें
लाजो-हया
तन-मन
रूह-जिगर
खिदमत में
हाजिर हैं !!!

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