कब तक मैं बैठी रहूँ द्वारे
विवाह पर्व की बाठ जुहारे
उम्र हो गई सोलह मेरी
बिहाय चली गईं सखियाँ मेरी !
अब रातन में नींद न आये
करवट बदल बदल कट जाए
अब हांथन भी सम्हल न पाएं
कभी इधर, कभी उधर को जाएँ !
यौवन की दहलीज पे मैं हूँ
अंग अंग मेरे फड़कत जाएँ
देह तपन में जल जल जाए
अंग अंग रस हैं छलकाएं !
कल सखिया संग लिपट गई थी
सिमट बाहों में उसके गई थी
अंग अंग सब सिहर गए थे
खिल गए थे, छलक गए थे !
पिया मिलन की आस जगी है
मन में बसे कुछ ख़्वाब जगे हैं
मन-यौवन सब सिहर रहे हैं
विवाह पर्व की बाठ जुहारे !
विवाह पर्व की बाठ जुहारे
उम्र हो गई सोलह मेरी
बिहाय चली गईं सखियाँ मेरी !
अब रातन में नींद न आये
करवट बदल बदल कट जाए
अब हांथन भी सम्हल न पाएं
कभी इधर, कभी उधर को जाएँ !
यौवन की दहलीज पे मैं हूँ
अंग अंग मेरे फड़कत जाएँ
देह तपन में जल जल जाए
अंग अंग रस हैं छलकाएं !
कल सखिया संग लिपट गई थी
सिमट बाहों में उसके गई थी
अंग अंग सब सिहर गए थे
खिल गए थे, छलक गए थे !
पिया मिलन की आस जगी है
मन में बसे कुछ ख़्वाब जगे हैं
मन-यौवन सब सिहर रहे हैं
विवाह पर्व की बाठ जुहारे !
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