Thursday, February 10, 2011

खामोशी !

मेरी तन्हाई में आकर
तुम अक्सर मुझसे बातें करती हो
सामने रहकर
खामोश बनकर मुझसे बातें करती हो
तुम चाह कर भी
जुबाँ से कुछ कहती नहीं
विदा होने पर
मिलने का वादा करती नहीं
क्या समझें हम तुम्हें
कि तुम चाहती हो
पर चाहत का इकरार करती नहीं !

सुना है लोग कहते हैं
कि जब तुम उनसे मिलती हो
तो सिर्फ मेरी ही बातें करती हो
पर जब मेरे पास होती हो
तब क्यों खामोश रहती हो !

ऎसा लगता है
कि तुम हर पल अपने आप से
सिर्फ मेरी ही बातें करती हो
पर जब मेरे पास होती हो
तब क्यों खामोश रहती हो !

अब क्या कहें अपने ‘दिल’ से
जब वो हमसे पूछता है
कि ‘उदय’ तेरी आशिकी
पत्थर दिल क्यों है!
अब क्या कहूँ
जब तुने मुझसे कुछ कहा नही !!

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