Tuesday, April 5, 2011

दस्तूर !

कुछ मीठा तो कुछ तीखा है
कुछ तीखा तो कुछ मीठा है
जीवन के दस्तूर निराले
धूप-छाँव घटते-बढ़ते हैं
जैसे जैसे दिन-रात चलते हैं
एक एक पल में जीवन देखो
कैसे घटते, कैसे बढ़ते हैं
खुशी खुशी है पल पल में
अगले पल हैं गम जाते
आते-जाते, गम-खुशियाँ भी
जैसे जैसे हम चलते-चलते हैं
धूप गई फिर छाँव है आई
गम गए फिर खुशी है आई
चलते चलो, बढ़ते चलना है
कुछ पल ठहरें, सुस्ता लें हम
फिर तो आगे, आगे बढ़ना है
जन्म हुआ जीवन जी लें हम
मौत आए, फिर तो चलना है
कुछ मीठा तो कुछ तीखा है
कुछ तीखा तो कुछ मीठा है
जीवन के दस्तूर निराले
आज यहाँ, कल कहाँ ठिकाना
तुम जानो, हम जानें
जीवन के दस्तूर निराले
चलते चलना, बढ़ते चलना है !!

1 comment:

कविता रावत said...

न तुम जानो, न हम जानें
जीवन के दस्तूर निराले
चलते चलना, बढ़ते चलना है !!
....जिंदगी का यही तो दस्तूर है, न जाने कितने मोड़ों से गुजरती हैं जिंदगी ..कोई नहीं जानता ...सच लेकिन चलने का नाम ही तो जिंदगी है..
बहुत अच्छी भावपूर्ण रचना