Wednesday, April 6, 2011

सच ! जिन्दगी, उदास है मेरी !!

एक हंसी चेहरा तुझसा
सारे जग में
सच ! कहीं नहीं दिखता !
वो हंसीं, वो मुस्कान
कहीं दिखती नहीं मुझको
हैं, बहुत हैं, हंसी चेहरे
पर वो कशिश, वो नजाकत
जो तुझमें, तेरी अदाओं में है
कहीं दिखती नहीं मुझको !
गर मैं चाहूँ, हंसना
तेरे बगैर हंस नहीं पाता
तेरे सांथ होने से, जिन्दगी
कितनी हंसी, खुशमिजाज थी !
गर, तुझ-सी, हंसीं, मुस्कान,
कशिश, नजाकत, मिल भी जाए
पर, तुझ-सा, आलिंगन, चुम्बन
गर्म सांसें, तपता बदन, खौलते जज्बे
इनका क्या, क्या मिल पायेंगे !
शायद नहीं, मुश्किल लगते हैं
तेरे जाने, पास नहीं होने से
सच ! जिन्दगी, उदास है मेरी !!

1 comment:

Rahul Singh said...

जिंदगी नहीं, आप जरा टेम्‍पररी उदास लगते हैं.