Monday, April 4, 2011

गर्म रातें !!

अब रातें गर्म हो चली हैं
उतनी ही, जितनी
तुम्हारे सांथ होने पर
सर्द रातें, गर्म हुआ करती थीं
पर उन रातों में, तुम
होती थीं सांथ सांथ
कभी बिछौने की तरह
तो कभी चादर की तरह
हर दम, हर पल
होती थीं, सांथ सांथ
जहन में सांसों की तरह
दिल में धड़कन की तरह
पर जब से तुम सांथ नहीं हो
रातें गर्म, गर्म होते चली हैं !!

1 comment:

Kailash Sharma said...

बहुत भावपूर्ण रचना..बहुत सुन्दर