Tuesday, April 12, 2011

मर्जी के मालिक !

मानते
तो क्या करते
चलो, मान लिया
मानना था !
क्या रक्खा था
फिजूल की बहसों में
गुनाह हो जाता
गर
हम मानते
चलो अच्छा हुआ, जो हुआ
कोई तो खुश है
किसी को तो सुकून मिला !
पहले
कितने बुरे थे, हम
तर्क, वितर्क, कुतर्क
लगते थे करने
पर
बदल गए
समय, काल, हम !
चलो, काम आए
हम, आज किसी के
पहले
सुनते नहीं थे, किसी की
हुआ करते थे
मालिक, हम अपनी मर्जी के !!

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