Tuesday, May 31, 2011

... एक उम्मीद थे ... बाबू जी !!

कुदरत का विधान है
जो आया है
उसे जाना ही है
आज उनकी, तो कल किसी की
फिर कल किसी की
एक एक कर, हम सभी की
बारी आनी है ... जाने की
एक जहां से
दूसरे जहां की ओर
उस जहां में ... जहां से
कोई लौटा नहीं है
थे जब तक, एक साये की तरह थे
जाना था ... चले गए ... बाबू जी
चिलचिलाती धूप में
शीतल छाँव थे ... बाबू जी
कडकडाती ठण्ड में
गर्म साँसें थे ... बाबू जी
तूफानी बारिश में
बरगद का दरख़्त थे ... बाबू जी
क्या थे, क्या नहीं थे
हर घड़ी, हर क्षण, हर पल
एक आस, एक सहारा, एक उम्मीद थे ... बाबू जी !!

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