Wednesday, June 15, 2011

पटकनी !

बाबा जी ... उछले ... और उछल कर
गए ... मैदान में ... बेवजह
बेवजह ... इसलिए ... उन्हें किसी से
लेना
-देना था ... शायद ... कुछ भी नहीं !
फिर भी ... मारी ... दे मारी
छलांग ... राजनैतिक अखाड़े में
भिड़ गए ... कालेधन और भ्रष्टाचार की आड़ में
राजनैतिक ... पहलवानों से
जोश ... और खरोश से ... कूदे
डटे रहे ... अड़े रहे ... डटना ... और अड़ना
पडा भारी ... पहले ... राजनैतिक पहलवानों को
पर ... जब ... जैसे ही ... उन्हें मिला मौक़ा
और ... जब दी पटकनी ... जोर की
तो ... बाबा जी हुए ... चारों खाने चित्त !
भले ही दांव ... धोखे से ... छल से
पर ... दांव तो दांव था ... वो भी जोर का
और ... बाबा जी हुए ... चित्त ... चारों खाने
अब ... सिर पकड़ें ... या कमर पकड़ें
और कब तक पकड़ें ... पटकनी ... तो थी जोर की !
और था भी नहीं ... अखाड़ा ... बाबागिरी का
जो ... सहजता से निपट लेते
राजनैतिक था ... और पटकनी भी राजनैतिक !
माना ... पटकनी से ... बाबा जी ... हुए चित्त
और राजनैतिज्ञों की हुई ... पौ-बारह
पर ... राजनैतिक पहलवान ... ये न भूलें कि -
बाबा जी ... दूध से जले हैं
और जलन भी ... खूब हुई है
ऐसा जला हुआ आदमी ... और वो भी ... बाबा
जिसके पीछे ... जन और जनाधार दोनों है
मौके की तलाश रहेगी ... जैसे मिलेगा ... मौक़ा
देगा पटकनी ... और दिलाएगा याद ... छट्टी का दूध !!

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