Thursday, June 23, 2011

यादों के साये में ... बाबू जी !

बाबू जी ...
क्या थे, क्या नहीं थे
आज भी, समझना बांकी है
आज "फादर्स डे" पर
वे, यादों में, कुछ इस तरह
उमड़ आये
आँखें, चाह कर भी
खुद--खुद नम हो गईं
वैसे तो अक्सर
हो ही जाती हैं, नम
आँखें, उनकी याद में
पर, आज, कुछ ज्यादा ही
लबालब हो चलीं
खैर ...
कोई चाहे, या भी चाहे
फिर भी होते हैं सांथ
हर घड़ी, हर पल, हर क्षण
जिन्दगी के सफ़र में
बन ... हमसफ़र
संग संग ...
यादों के साये में ... बाबू जी !!

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