Tuesday, July 5, 2011

सर्द रातें !

सर्द रातें थीं
सिमटे सिमटे से
हम बैठे रहे
उंकडू
बांहों में बांहे
डाल कर
सिमटे रहे

खुद ही से !
करते भी क्या
धुंध बिखरा था
शीत भी
गिरने लगी थी
सिमटे रहे
सिमटते रहे ...
जाने
और कितना
सिमटना था, हमको
हम ही से ...
कडकडाती ठंड में
बैठे बैठे,
उंकडू
इंतज़ार में
तुम्हारे ... !!

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