Saturday, August 20, 2011

एक नई मंजिल की ओर

कभी कभी
चलते चलते राह में
हम
सहम से जाते हैं
कुछ देखकर, कुछ भांप कर
ज़रा-ज़रा सी आहट पर
कभी कुछ होता है -
कभी कुछ नहीं भी होता है !
पर
जब हम सहम जाते हैं
तब
न चाहकर भी, कुछ पल को
हम
सहमे ही रहते हैं !
होता है अक्सर
न चाहते हुए भी, न चाहकर भी !
फिर
चलते हैं, चल पड़ते हैं, हम
आगे की ओर
थोड़ा थोड़ा सहमे हुए ही, पर
चलते चलते
मिलता है, फिर, धीरे धीरे
हौसला हमें
आगे बढ़ने के लिए, तेज चलने के लिए
फिर
ठहरते नहीं, सहमते नहीं
चलते, चले चलते हैं
हम
नए हौसले, नए जज्बे,
नए कदमों संग
धीरे धीरे ...
एक नई मंजिल की ओर !!

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