Friday, August 26, 2011

'सत्य-अहिंसा' के पथ पर

चलो लड़ लें
किसी किसी से, आज लड़ ही लें
किसी किसी से ही क्यों
किसी से भी लड़ लें
जब लड़ना ही है, तब सोचना कैसा !
उठो, बढ़ो, और लड़ लो
किसी से भी, जो सामने नजर आए, उसी से लड़ लो
फिर, भले वह छोटा हो, या बड़ा
क्या फर्क पड़ता है, छोटे या बड़े होने से !!

जब, सिर्फ, लड़ना ही मकसद है
तब, पटकनी खा जाओगे, या पटकनी दे दोगे
किसी से पिट जाओगे, या पीट दोगे !
सोच लो, समझ लो
लड़ना, और लड़ कर, जीत -
जीत जाने में, फर्क, बहुत फर्क होता है
हारने को तो कोई भी, कहीं भी, किसी से भी हार जाता है
और जीत का भी, लग-भग यही पैमाना होता है !!

पर
वह इंसान, कभी नहीं हारता, जिसकी लड़ाई
सत्य के सांथ, अहिंसा के पथ पर होती है
फिर, भले चाहे, लड़ाई -
सबसे ताकतवर आदमी से ही क्यों हो !
ऐसी लड़ाई, लड़ाइयों में, अक्सर
कभी हार कर, तो कभी जीत कर
जीतता वही है
जो होता है, सत्य-अहिंसा के पथ पर !!

1 comment:

विभा रानी श्रीवास्तव said...

आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 30 जनवरी 2016 को लिंक की जाएगी ....
http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!