Saturday, September 3, 2011

कविता और कवि

मैं अक्सर सोचता हूँ
दूर रखूँ, खुद को
कविता से, कविताओं से
कविता लेखन से ...
पर, ऐसा हो नहीं पाता
चाहते हुए भी, चाहकर भी
मैं, समा जाता हूँ, कविता में !

बहुत कोशिश की, बार बार कोशिश की
दूर रहने की
अपने आप को दूर रखने की
पर, मैं असफल ही रहा !

मैं जानता हूँ, महसूस करता हूँ
भली-भाँती समझता हूँ
कि -
कविता का भारतीय साहित्य के व्यवसायिक जगत में
उतना महत्त्व नहीं है, जितना होना चाहिए !

इसकी वजह चाहे जो हो
पर, मैं ऐसा मानता, जानता, महसूस करता हूँ
कि -
कविताएं
हर किसी के पल्ले भी नहीं पड़ती हैं
एक तो समूचे लोग, पढ़ना ही नहीं चाहते
दूजे, यदि कोई पढ़ता भी है, तो उसे
कविता के भाव, पूर्णत: समझ में, नहीं आते !

देखा है, मैंने, महसूस भी किया है
अपने मित्रों को
जो
अच्छे-खासे पढ़े-लिखे होने के बाद भी
कविताओं को, भावों को
समझ नहीं पाते हैं
इसकी वजह यह नहीं है
कि -
वे बुद्धिजीवी नहीं हैं, हैं, वे बुद्धिजीवी हैं
फिर भी ... !

शायद
एक वजह यह हो सकती है
मेरे दूर भागने की
लेकिन, फिर भी, मैं अपने आप को
चाहकर भी, ज्यादा समय, दूर नहीं रख पाता हूँ
कविता से, कविताओं से
कविता लेखन से !

अक्सर
कविता रूपी विचार
मेरे मन में उमड़ने लगते हैं
उद्धेलित होने लगते हैं, उद्धेलित हो जाते हैं
पता नहीं, ऐसा क्यों होता है
कि -
मैं, चाहकर भी, खुद को, रोक नहीं पाता हूँ
कविता लेखन से !

मुझे, यह भी पता है, महसूस भी करता हूँ
कि -
ऐसे बहुत से लोग हैं
जो
पत्र-पत्रिकाओं के उस हिस्से को देखना भी नहीं चाहते
जहां कविता विराजमान होती हैं
पढ़ना तो बहुत दूर की बात, कही जा सकती है !

फिर भी, जाने क्यों
मैं, खुद को, रोक नहीं पाता हूँ
कविता से, कविताओं से
कविता लेखन से !
मुझे पता है, महसूस होता है
कि -
बहुत से कवि, जीवन भर फटेहाल रहे
और फटेहाली में ही चल बसे
उनके जीते जी, उनके लेखन को
जो मान-सम्मान मिलना चाहिए था, नहीं मिला
मरने के बाद, भले चाहे ... !

मैं यह भी जानता, मानता, महसूस करता हूँ
कि -
कविता
साहित्यिक सागर का
एक ऐसा मोती है
जो -
अनमोल
बेजोड़
अद्भुत
अकाट्य
अजर-अमर है !
शायद, यही एक वजह हो सकती है
कि -
मैं, खुद को, रोक नहीं पाता हूँ
कविता लेखन से ... !!

1 comment:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

मन के उद्वेग को बखूबी लिखा है ..