Friday, September 30, 2011

दास्ताँ-ए-मोहब्बत

मरने को तो मर गए हैं लेकिन
फिर भी हम जिए जा रहे हैं !

बुझ तो गई हैं लकडियाँ सारी लेकिन
अंगार अब भी दहके जा रहे हैं !

जर्रा जर्रा जिस्म का जल गया है लेकिन
रूह वहीं पे खड़ी मुस्काये जा रही है !

भुलाना चाहा है तुमने हमको लेकिन
फिर भी हम याद आ रहे हैं !

ये कैसी मुहब्बत की थी तुमने हमसे
जो मर कर भी हम तुम्हें याद आ रहे हैं !

जर्रा जर्रा तुमने है भुलाना चाहा लेकिन
जर्रा जर्रा हम याद आ रहे हैं !!

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