Tuesday, October 4, 2011

... माँ से जियादा, माशूका अजीज हैं !

कौन कहता है, तुम मेरी चाहतों से लिपट जाओ
सच ! दूर भी रहो, तो कम से कम सहमे न रहो !
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एक दिन किसी ने, मेरा कद नापना चाहा था
सच ! उसे पता नहीं था कि मैं बैठा हुआ हूँ !!
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उफ़ ! कौन कहता है 'उदय' स्त्री ही स्त्री की विरोधी है
हमें तो घड़ी-दो-घड़ी की, जोर आजमाईश लगती है !
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लोग कहते हैं भूकंपी इंट्री हुई है हमारी
तब ही तो धुरंधर, सहमे सहमे हुए हैं !
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आज सत्य के संग, अहिंसा रूपी अनशन पर था
सच ! अनशन जीत गया पर आन्दोलन जारी है !
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नीचे पडी चवन्नी उठाने, क्या झुक गया यारो
ख़ामो-खां मुझे नेता समझ बदनाम कर डाला !
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जो फासले औरतों में, वही पुरुषों में भी देखे गए हैं
सच ! फर्क रहा है तो, मिजाजों में रहा है !!
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बदलते बदलते आदतें, हम खुद बदल गए
कभी होते थे मिट्टी, अब सोना हो गए !!
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सच ! न जाने क्या दास्ताँ है, मुहब्बत की, फसानों की
तनिक उलझन इधर भी है, तनिक उलझन उधर भी है !
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बस इतनी दुआ करते है 'माँई' से मुसीबत न आए
अगर आए तो उसके पहले ही क़यामत आ जाए ! 
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न आरजू, न ही मुहब्बत थी हमें उससे
सच ! हम तो यूं ही उसे आजमा रहे थे !
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दोस्ती में 'उदय' लुट गए थे हम
वरना आज कहीं और होते हम !
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'रब' जाने कब तलक संदेशे हमारे तुझ तक पहुंचेंगे
कहीं ऐंसा न हो, पहुंचते पहुंचते क़यामत आ जाए !
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सच ! हम जानते हैं, एक दिन हमें भी चले जाना है
न जाने कब तलक, मेरे अल्फाज तुम्हें छूते रहेंगे !
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हर किसी की दास्ताँ, अपनी अपनी ज़ुबानी है
कोई क्यूं सुनता नहीं उसकी, जो बे-ज़ुबानी है !
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वादा मुहब्बत का था, निभाने का नहीं था
बहुत हुई चिपका-चिपकी, अब फुर्सत नहीं है !
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मैं जागीर हूँ ऐंसी, जिसकी कोई वसीयत नहीं है
जिसका जी चाहे, जब चाहे, मुझे अपना कह दे !
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उफ़ ! रकीबों ने जनाजे की शान, खूब बढ़ाई है 'उदय'
अजीजों को कदम रखने की जगह नहीं बच पाई है !
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अगर होता तो होता, नहीं है तो नहीं है
आज मुल्क मेरा, किसी अजायबघर से कम नहीं है !
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'खुदा' जाने, क्यों सितमगर हुई हैं औलादें
जिन्हें माँ से जियादा, माशूका अजीज हैं !

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