Wednesday, October 12, 2011

... मिलकर सजाएं एक नया सबेरा !

ये देश लुटेरों का है, कर लो खूब लूटमार,कोई क्या बिगाड लेगा
पकडे भी गये तो,कोई दूसरा लुटेरा,तुम्हें लूट कर बचा लेगा।
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कागजों में इबादत नहीं करता, जुबां से कुछ बयां नहीं करता
ईश्वर बसता है धडकनों में मेरी, इसलिये मैं दिखावा नहीं करता ।
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वो आज क्यूं जख्म बन, मेरी आँखों में उतर आये थे
जब आँख से निकले तो, खून के कतरे निकले।
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क्या करूं तुझे अब सलाम, ए तिरंगे
खून से सने हाँथ भी तुझे, अब फहरा रहे हैं।
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कुछ लोगों ने आजादी को खिलौना बना दिया
खेलते-खेलते आजादी को, उठा-उठा कर पटक दिया ।
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मैं मानता हूं, खुदा सचमुच मेरा खुदा है
पर उसके रास्ते पर चल पाना बेहद जुदा है ।
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इक पल में, हज करके मैं बन गया हाजी
दूजे पल जब खुदा ने लिया इम्तिहां, तौबा तौबा। 
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ईश्वर को रास आते नहीं, अब मंदिर-मस्जिद
उसे तो बस, तुम्हारे दिलों में अब जगह चाहिये ।
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मंदिर-मस्जिद तो हम बहुत बना लेंगे
पर दिलों में जगह ईश्वर को हम कब देंगे ।
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फर्क इतना ही है यारा, तेरी-मेरी मोहब्बत में
कि तू खामोश रहती है, और मैं कुछ कह नहीं सकता ।
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जब से देखा है आईना, चहरे से सुकूं गायब है
शायद आज वह खुद पे हतप्रभ हुआ है !
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वो भी सच था, मैं भी सच था
गल्त क्या था, जब सब झूठा था !
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अजब रश्म-ओ-रिवाज हैं तेरे
चाहते भी रहो, और खामोश भी रहो। 
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क्या करें अफसोस अब हम, दोस्तों की चाल पर
कहने को तो दोस्त थे, पर आज वही दुश्मन निकले।
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जीते जी इंसानी रिश्तों का, क्रियाकर्म कर दिया
बेड़ा पार का था वादा, बेड़ा गर्क कर दिया। 
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कोई गल नहीं था, तेरे इम्तिहां का
सफ़र लंबा था, पैरों में कंकडों को तो आना था। 
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खफा रहना, बेवफाई का सबब कैसे है
खफा होने की बजह, बफा भी हो सकती है । 
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न रंज-ओ-गम होंगे, न सिकवे-गिले होंगें
वतन की सर-जमीं पे, चाँद के दीदार जब होंगें।
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क्या सुबह - क्या शाम होगी, हर घड़ी बस ईद होगी
न कोई हिन्दू - न मुसलमां होगा, दिलों में ईद का जश्न होगा।
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रंजिसों को दफ़न कर, कर लें तौबा गुनाहों से
चलो मिलकर करें सजदे, वतन को आस है हमसे।
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क्या तेरा - क्या मेरा, हर जगह है खुदा का बसेरा
आज ईद है, चलो मिलकर सजाएं एक नया सबेरा !

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