Saturday, October 1, 2011

... फ़ासले अभी और बांकी हैं !

न कर गुमान ख़ुद पे, वक्त ने दिया साथ तो निकल आए हो
छोडेगा जब साथ तो बिखर जाओगे !
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तंग हालत में भी, शान न टूटने पाये
'उदय' कुछ राहें , ऐसी दिखाते रहना !
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ये सच है, बहुत उलझा हुआ हूँ
पर सुकून है, तेरे साथ होने से !
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हम कडकेन्गे जब आसमान में बिजली बनकर
अंधेरों में कहीं तो रौशनी होगी !
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है मुमकिन करो कोशिश , तुम मुझको भूल जाने की
पर नामुमकिन ही लगता है, भुला पाना मुझे यारा !
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कभी इस पार, कभी उस पार
बता आख़िर तेरी रजा क्या है !
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कहीं भी आग दिखती नहीं यारा
न जाने ये धुंआ उट्ठा कहाँ से है !
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किसे अपना कहें , किसे बेगाना
सफर में तो सभी, हमसफ़र हैं 'उदय' !
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तेरा पतलून की जेबों को खामों-खां टटोलना अच्छा लगा
पैसे क्यों दे दिए 'जनाब', बाद में ये पूंछ लेना भी अच्छा लगा !
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मोहब्बत में जीने-मरने की क़समें खाते हैं सभी
पर दस्तूर है ऐसा , कोई जी नहीं - तो कोई मर नहीं पाता !
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नहीं है रंज, तेरी बेवफ़ाई का
रंज है तो, तेरी खामोशियां हैं।
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हम इंसा थे, या थे मिट्टी के पुतले
बारिश की बूंदों ने हमें मिट्टी बना डाला।
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कहीं कु़छ थी बुराई, अन्दर ही मेरे
मैं अच्छा करता रहा, शायद बुरा होता रहा।
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मुफ़लिसी में भी, न रहा हाथ तंग मेरा
अमीरों को भी, चाय पिलाता रहा हूं।
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हम अच्छे थे तब तक, जब तक तूने 'खुदा' माना
फ़िर क्या था बुराई में, जब तूने बुरा माना।
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कदम-दर-कदम हौसला बनाये रखना, मंजिलें अभी और बांकी हैं
ये पत्थर हैं मील के गुजर जायेंगे, चलते-चलो फ़ासले अभी और बांकी हैं।
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उतर आये थे सितमगर आसमां से, जुल्म ढाने को
वो पत्थर उछाल रहे थे, और पडौसी मुस्कुरा रहे थे।
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तेरा अंदाज-ए-सितम कांटों से भी नाजुक निकला
कब आये, कब चोट पहुंचाई, कब निकले, हमें अहसास न हुआ।
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मेरे हाथों की लकीरों का, सफ़र अभी लंबा है
सुकूं की चाह तो है, पर अभी थकान बांकी है।
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गुनाह इतने किये अब प्रायश्चित मुमकिन नहीं यारा
क्या होगा कहर 'खुदा' का, सोचकर ही सिहर जाता हूं। 

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