Tuesday, October 25, 2011

आज नया क्या लिख रहे हो ?

कब तक दिलासा दूं
खुद को
कि -
कुछ लिख रहा हूँ
कब तक !

रोज वही चेहरे, वही लोग
होते हैं सामने मेरे
खामोश रहकर भी कुछ न कुछ -
कहते हैं मुझसे, पूंछते हैं मुझसे
कि -
आज नया क्या लिख रहे हो ?

ऐंसे कब तक चलेगा
कब तक
चलते रहेगा
कब तक यूं ही -
कुछ छोटा-मोटा लिखते रहूँगा
कलम को -
पकड़ कर, यूं ही बैठे रहूँगा !

जी चाहता है, मेरा
कि -
कुछ ऐंसा लिखूं -
जैसा पहले कभी लिखा नहीं गया !
जैसा पहले कभी सोचा नहीं गया !
जैसा पहले कभी पढ़ा नहीं गया !

सच ! हाँ
कुछ ऐंसा ही लिखने का -
सोचता हूँ
कुछ ऐंसा ही लिखने की ओर -
बढ़ना चाहता हूँ
कलम मेरी
उस ओर ही है, जिस ओर ...
पहले कभी, कोई पहुंचा नहीं है !!

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