Thursday, October 6, 2011

युगों युगों से तुम पर ...

सच ! मरते रहे हैं तुम पर
युगों युगों से हम
अब बदन की आड़ लेकर
हमारी चाहतों पे
तुम इल्जाम मत लगाओ ...

आज
जिस बदन पे तुमको
गुमान हो रहा है
वो है कहाँ तुम्हारा
सदियों सदा से वो तो
पल पल रहा हमारा ...

गर तुमको यकीं नहीं है
देखो ज़रा छूकर
तुम बदन को खुद ही
सिहरन भी न उठेगी
धड़कन भी न हिलेगी
साँसें भी न चलेंगी
छुए बगैर मेरे ...

अब क्या मिलेगा मुझको
तुमसे उलझ-सुलझ कर
बस इतना जान लो तुम
हम जां लुटा रहे हैं
युगों युगों से तुम पर ...


सिर्फ खता नहीं तुम्हारी
आज जिस किसी को देखो
वो, हम पे
तीखी नजरें उठा रहा है
अब तुम ही कुछ कह दो
क्या कसूर है हमारा ...


अब जब
खुद के रहे नहीं हम
क्या हक़ नहीं बदन पर
जब
हम खुद हो चुके तुम्हारे !!

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