Saturday, October 1, 2011

बम धमाके गूंजते हैं, अब सभी के जहन में !

तेरी जुबां का ईमान देखकर, तेरी आंखों से यकीं उठ चला है
कभी हां, कभी ना, अब तू ही बता, ये क्या फ़लसफ़ा है ।
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आज फ़िर, उसके चेहरे पे हंसी होगी
मेरे घर की खप्पर, तूफ़ानों ने जो उडा रक्खी है।
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सिर पे बांध के कफ़न, वो घर से निकल आया था
तूफ़ान जब ठहरे, तो लोगों ने उसे 'खुदा' माना था। 
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चमचागिरी का दौर बेमिसाल है
चमचों-के-चमचे भी मालामाल हैं।
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तेरी चमचागिरी को देखकर 'सलाम' करता हूं
क्या 'हुनर' पाया है एतराम करता हूं। 
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'उदय' जानता है, लिखने से कितना परहेज था हमको
पर तेरी खामोशियों ने, न जाने क्या क्या लिखा दिया।
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नहीं है रंज, तेरी बेवफ़ाई का
रंज है तो, तेरी खामोशियां हैं।
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इस भीड में, कहां अपनी 'हस्ती' है
जहां देखो, वहां 'मौका परस्ती' है।
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गुमां है खुद पे, या यकीं है
कि तू 'शेर' है, बेखौफ़ फ़िरता है। 
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जब से छोडी हैं बच्चों ने उडानी पतंगें
तब से आसमां भी बदरंग-सा लगने लगा है।
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दिनों में जिंदगी का सफ़र होता कहां पूरा
इसलिये रातों में भी जाग लेता हूं। 
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काश तनिक हम भी, बेईमान हो गये होते
खुद के नहीं तो, किसी के काम आ गये होते।
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हमने यूं ही कह दिया, क्या माल है
वो पलट कर आ गये, कहने लगे खरीद लो।
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जब धडकनें दिलों की सरेआम हो जाएं
तब कर लो गुनाह ये कहकर, मोहब्बत है - मोहब्बत है।
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क्या थी मोहब्बतें, क्या जज्वात थे, फर्क था तो सिर्फ इतना
कोई हमें चाहता रहा, और हम किसी को चाहते रहे |
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अब अंधेरों को, गुफाओं की जरुरत है कहाँ
गरीबों के बसेरों में, अंधेरे ही अंधेरे हैं |
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मौक़ा-परस्ती का हुनर, बेजोड़ हो गया
कल जो था गाँव का गंगू, आज सेठ गंगाराम हो गया |
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हमारी दोस्ती, 'खुदा' बन जाए, है इच्छा
अब खुशबू अमन की, 'खुदा' ही बाँट सकता है ।
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अब कुछ इस तरह भी, इम्तिहां मत लेना 'उदय'
जमीं पैरों तले की खिसकते रहे, और हम देखते रहें  !
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काम न आई वतन में, सत्य की वाणी 'उदय'
झूठ-फ़रेव का मुखौटा, बहुत काम आ रहा है ।
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सुकूं-चैन कहीं दिखता नहीं, जमीं पर 'उदय'
न जाने क्यूं, फ़िर भी मैं जिहादी बन गया हूं । 
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आज फिर बस्ती अमन की, खून से लत-पथ हुई
बम धमाके गूंजते हैं, अब सभी के जहन में ।

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