Wednesday, October 12, 2011

... उसे देशभक्त न पुकारा जाए !

गुलामी के दिनों में जो सिहर जाते थे 'उदय'
उफ़ ! वो आज खुद को आजमा रहे हैं !
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दर, दीवार, घर, दुकां, गली, मोहल्ला
ये हिन्दोस्तां है, यहाँ सब मजहबी हुए हैं !
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सियासत, राजनीति, कूटनीति, हैं बिसात शतरंजी
अपनी जीत के खातिर, खुदी के मोहरे पीट देते हैं !
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काश तेरी दुआओं में पल दो पल को हम भी होते
दो चार घड़ी सुख-चैन के, हम भी जी लिए होते !
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पता नहीं इस ख़त में किसका पैगाम आया है
शायद किसी भूले को, मुझसे कोई काम आया है !
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कल डूबते डूबते, डगमगाती नइय्या, संभल गई
सच ! शायद माँ की दुआओं का असर है !
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कोई सुबह से चिल्ला रहा था, मैं हमनवा हूँ
देख चिलचिलाती धूप, जा पेड़ नीचे बैठा था !
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सुन लोकतंत्र की बातें मन मीठा हुआ था
सच ! बसर कर के देखा, कडुवा लगा है !
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चलो थकान दूर हुई, इत्मिनान से बैठें 'उदय'
सच ! सालों का कर्ज था, आज उतर गया !
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कोई इधर, तो कोई उधर की कह रहा है 'उदय'
उफ़ ! लगता है, सब मिले हुए हैं !
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बा-अदब बेचैनी टूट गई
सच ! जब तेरा पैगाम आया !
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उसकी दुआओं से, मैं सिहर गया 'उदय'
सच ! ऐसा लगा, कोई तुझे मांग रहा है !
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नेतागिरी कारोवार हुई है 'उदय'
नफ़ा-ही-नफ़ा, हर मोड़ पे चर्चा है !
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होंठ, अमृत, आँखें, झील, गेसु, आसमां
क्या करें, कोई समझाये हमें !
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मर गया, कोई बात नहीं, अफसोस मनाया जाए
भ्रष्ट था, भ्रष्टाचारी था, उसे देशभक्त पुकारा जाए !
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शाम से, लालकिला तो संवर जाएगा यारो
चलो किसी झोपडी में, दीपक जलाया जाए !
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क्यों नज़रों को आजमा के देख लिया जाए
शायद ! ठहर जाएँ नजरें, हो जाए मोहब्बत !
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क्या खूबसूरती है, ज़रा ठहर, देख लूं तो चलूँ
जन्नत सा सुकूं है आँखों में, देख लूं तो चलूँ !
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चलो अच्छे-बुरे के जज्बे को आजमा लें
कोई तो होगा, जो तसल्ली देगा !
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क्यों लोग मस्त हैं, पत्थर तराश कर मूर्ती बनाने में 'उदय'
चलो आज किसी बच्चे को तराश कर, 'खुदा' बनाया जाए !

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