Thursday, November 10, 2011

जगहंसाई का शौक

एक बड़े अफसर हैं, बहुत बड़े !
प्रदेश के एक विभाग के जिम्मेदार अफसर हैं
हाँ भई, कप्तान हैं
वो भी पुलिस जैसे महत्वपूर्ण विभाग के
जी हाँ
पुलिस विभाग के ही, जिले के कप्तान हैं !

पर, सुनते हैं उन्हें जगहंसाई -
जी हाँ, जगहंसाई की आदत है
समय समय पर
वे कुछ न कुछ ऐंसे निर्णय -
लेते हैं, ले ही लेते हैं
जिससे, उनकी जगहंसाई, खुद-ब-खुद हो जाती है !

अब क्या कहें, क्या न कहें, एक बार -
उन्होंने जगहंसाई की एक नई मिशाल पेश कर दी
आश्चर्यजनक, किन्तु सत्य ...
हुआ दरअसल यह कि -
उनके प्रदेश में, सिर्फ उनके प्रदेश में ही नहीं
वरन देश के चार-छ: प्रदेशों में भी
विधानसभा चुनावों की तैयारी, जोर-शोर से चल रही थी
बस चुनाव तिथि की घोषणा होनी शेष थी
अब शेष बोले तो, चुनाव आयोग की तरफ से हरी झंडी !

रोज, हर रोज, टीव्ही चैनल्स, न्यूज पेपर्स में
चर्चा-परिचर्चा जोरों पे थी
और लो हो गई घोषित - चुनाव की डेट
चुनाव आचार संहिता लागू -
सारे के सारे अधिकार, सभी विभागों के -
हस्तांतरित हो गए, चुनाव आयोग के पास !

भाई साहब, इसमें नया क्या है ?
होता है, यही होता है
हरेक चुनाव में, सब जानते हैं !
जी हाँ जनाब, बिलकुल यही होता है, सब जानते भी हैं
कोई नई बात नहीं है
अगर कोई नई बात है तो वो ये है
कि -
कप्तान साहब ने खुद-ब-खुद, खुद की जगहंसाई करवा ली
पूछो, वो कैसे ?

हुआ दरअसल यह कि -
उनके जिले में चार-पांच थाने -
थानेदारों की पोस्टिंग के लिए खाली पड़े थे
और उनके पास -
दस-ग्यारह थानेदार भी सामने लाइन में खड़े थे
पर, सुनते हैं कि - कप्तान साहब ने
पोस्टिंग की सूची तो बनाकर
अपनी जेब में रख ली थी
और रखकर सप्ताह भर तक इधर-उधर घूमते भी रहे थे
पर ... पर क्या ?

कप्तान साहब ने दस्तखत नहीं किये थे
सूची उनकी जेब में धरी की धरी रह गई
धरी इसलिए रह गई कि -
अब सारे अधिकार कप्तान साहब से छिन कर
चुनाव आयोग के पास चले गए !
और कप्तान साहब, खुद-ब-खुद, खुद का मुंह तकते रह गए !

ये तो कप्तान साहब की जगहंसाई का -
एक मामूली-सा किस्सा है
असली जगहंसाई तो, इसी किस्से में छिपी है यारो
जो अपने आप में, जगहंसाई का एक बेजोड़ नमूना है
वो नमूना -
इनके जिले के इकलौते महिला थाने में -
थानेदार की पोस्टिंग का है ... उफ़ ! क्या कहें !!

ऐंसा नहीं था कि खाली पड़े महिला थाने में
पोस्टिंग के लिए महिला थानेदार नहीं थे
थे, तीन-चार महिला थानेदार भी थे
किन्तु, परन्तु, अब क्या कहें ...
कप्तान साहब को जगहंसाई की आदत जो पडी थी
कैसे आ जाते बाज, पैदाइसी आदत से ...
इसलिए साहब ने - वहां भी किसी की पोस्टिंग नहीं की !

और जब पोस्टिंग हुई, चुनाव आयोग से
तो महिला थाने में, पुरुष थानेदार की हुई
सुनते हैं, वो भी, कप्तान साहब की मेहरवानी से !
दुखद, किन्तु आश्चर्यजनक ...
कप्तान साहब की जगहंसाई की आदत की कीमत
बुजुर्ग, रिटायरमेंट के कगार पे खड़े
एक पुरुष थानेदार को पोस्टिंग से चुकानी पडी !

जब पत्रकारों ने कप्तान साहब से पूंछा -
तो वे हंस कर सवाल को टाल गए
और मुस्कुराते-मुस्कुराते वहां से चले गए
पत्रकार भी अचंभित हुए, और बोले -
कैसा कप्तान है यार ?
वहीं पे खड़े एक थानेदार ने कहा -
जाने दो यारो ...
कप्तान साहब को जगहंसाई का पैदाइसी शौक है !!

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