एक भाई साहब
आज सुबह सुबह बिना ब्रेक की गाडी की तरह
आकर मुझ से भिड़ पड़े
बोले - क्यूँ भाई साहब -
आपको चमचों से इतनी एलर्जी क्यों है ?
मैंने कहा - आपको किसने कह दिया
कि -
मुझे चमचों से एलर्जी है !
अब इसमें कहने-सुनने की, क्या बात है
जब देखो तब -
पिल पड़ते हो अपने लेखन में चमचों पे
आपने, उनका जीना दुभर कर रक्खा है
बेचारे -
चैन से चमचागिरी तक नहीं कर पा रहे हैं !
मैंने कहा - सुनिए हुजूर
चमचे और चमचागिरी तो मेरे आदर्श पात्र हैं
देखना इक दिन इन्हीं आदर्श पात्रों पे
लिख लिख के, कलम घसीटी कर कर के
मैं भी गुरु बन जाऊंगा
वह दिन दूर नहीं, जब -
मैं भी चमचों का सरदार कहलाऊंगा !!
आज सुबह सुबह बिना ब्रेक की गाडी की तरह
आकर मुझ से भिड़ पड़े
बोले - क्यूँ भाई साहब -
आपको चमचों से इतनी एलर्जी क्यों है ?
मैंने कहा - आपको किसने कह दिया
कि -
मुझे चमचों से एलर्जी है !
अब इसमें कहने-सुनने की, क्या बात है
जब देखो तब -
पिल पड़ते हो अपने लेखन में चमचों पे
आपने, उनका जीना दुभर कर रक्खा है
बेचारे -
चैन से चमचागिरी तक नहीं कर पा रहे हैं !
मैंने कहा - सुनिए हुजूर
चमचे और चमचागिरी तो मेरे आदर्श पात्र हैं
देखना इक दिन इन्हीं आदर्श पात्रों पे
लिख लिख के, कलम घसीटी कर कर के
मैं भी गुरु बन जाऊंगा
वह दिन दूर नहीं, जब -
मैं भी चमचों का सरदार कहलाऊंगा !!
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