Saturday, November 12, 2011

साहित्य के सूरज

ये कैसी दुनिया है 'उदय'
जहां डूबते सूरज -
खुद ही सुनहरे हो रहे हैं !

ऊगते सूरज -
और चिलचिलाती धूप से
मूँद के आँख -
डर के किनारे हो रहे हैं !

आग, ताप, तेज, वेग
और ज्वलनशीलता
डूबता सूरज कहाँ से दे हमें !

जो दे सके है, उसी से
पीठ कर -
ओट में खड़े ये हो रहे हैं !!

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