पुरुष धरा
तो औरत आकाश है
पुरुष नदी
तो औरत सागर है
पुरुष पवन
तो औरत संसार है
पुरुष फूल
तो औरत श्रृंगार है
चंहू ओर
औरत ही औरत है
फिर भी
न जाने क्यूं उसे -
आजादी की दरकार है !!
तो औरत आकाश है
पुरुष नदी
तो औरत सागर है
पुरुष पवन
तो औरत संसार है
पुरुष फूल
तो औरत श्रृंगार है
चंहू ओर
औरत ही औरत है
फिर भी
न जाने क्यूं उसे -
आजादी की दरकार है !!
No comments:
Post a Comment